बिहार चुनाव से पहले नीतीश मंत्रिमंडल का विस्तार

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बिहार विधानसभा चुनाव के सिर्फ 10 महीने रह गए हैं और अब अंतिम समय में नीतिश कुमार ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार कर सात मंत्रियों को शामिल किया है। मंत्रिमंडल विस्तार से ठीक पहले भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर दिलीप जायसवाल ने एक व्यक्ति एक पद के सिद्धांत का हवाला देते हुए भूमि एवं राजस्व मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। पर गौर करने वाली बात है कि इस बार सभी सात मंत्री गठबंधन के सहयोगी दल भाजपा के बनाए गए हैं। जदयू (जनता दल यूनाइटेड) के किसी नेता को मंत्रिपद नहीं दिया गया है। राज्यपाल महोदय आरिफ मोहम्मद खान ने सभी सात विधायकों को मंत्रिपद की शपथ दिलाई।

इस नवीनतम विस्तार के बाद राज्य सरकार में भाजपा के मंत्रियों की संख्या 15 से बढ़कर 21 हो गई है जबकि जदयू के अभी भी 13 मंत्री हैं। अब सत्ता में बड़े भाई की भूमिका में रही जेडीयू के मंत्रियों की संख्या भाजपा से कम हो गई है। सरकार में हिंदुस्तान अवाम मोर्चा और निर्दलीय कोटे से एक-एक मंत्री हैं। कैबिनेट विस्तार के बाद नीतीश मंत्रिमंडल में कुल 36 मंत्री हो गए हैं। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में जदयू के 45 और भाजपा के 80 विधायक हैं।

माना जा रहा है कि मंत्रिमंडल विस्तार के ज़रिए एनडीए ने चुनाव के पहले गठबंधन के नट बोल्ट टाइट किए हैं। नए मंत्रियों में दरभंगा से संजय सरावगी, बिहारशरीफ़ से सुनील कुमार, जाले से जिवेश कुमार, साहेबगंज से राजू कुमार सिंह, रीगा से मोतीलाल प्रसाद, सिकटी से विजय कुमार मंडल और अमनौर से कृष्ण कुमार मंटू शामिल हुए हैं।

भाजपा ने इस विस्तार से बिहार के जातीय समीकरण को साधने की कोशिश की है। जातीय जनगणना के मुताबिक़, बिहार की आबादी में सवर्ण 15 प्रतिशत, पिछड़ा 27 प्रतिशत, अति पिछड़ा 36 प्रतिशत, दलित 19 प्रतिशत और आदिवासी एक फ़ीसदी है।

विस्तार में तीन पिछड़े, दो अति पिछड़े और दो सवर्ण विधायकों को मंत्री बनाया गया है। दो मंत्री वैश्य समुदाय से बनाए गए हैं। कैबिनेट विस्तार के बाद अब नीतीश मंत्रिमंडल में पिछड़ा 10, अतिपिछड़ा 7, सवर्ण 12 और महादलित 7 मंत्री हो गए हैं।

विस्तार में मिथिलांचल को भी साधने की कोशिश की गई है।मिथिलांचल के दो ज़िलों दरभंगा और सीतामढ़ी से संजय सरावगी, जिवेश कुमार और मोती लाल प्रसाद मंत्री बनाए गए हैं। बीजेपी इस बार मिथिलांचल पर ज्यादा फ़ोकस कर रही है। केन्द्रीय बजट में मखाना संवर्धन की नीति के बाद अब मंत्रिमंडल विस्तार में मिथिलांचल के नेताओं को मंत्री बनाने से यब बात सामने आ गई है। वैश्य जाति को भी पूरी तवज्जो दी जा रही है। डॉक्टर दिलीप जायसवाल के इस्तीफ़ा देने पर वैश्य समुदाय के ही दो नेताओं को भाजपा ने मंत्री बनाया है। दरअसल, वैश्य जाति बीजेपी का कोर वोटर रहा है। भाजपा ने लोकसभा चुनाव में शिवहर सीट से रमा देवी का टिकट काटा था जिसके बाद से ही वैश्यों में नाराज़गी बताई जा रही थी। इसकी भरपाई के लिए उसने दिलीप जायसवाल को पहले मंत्री और बाद में प्रदेश अध्यक्ष बनाया।

इस मंत्रिमंडल विस्तार में जदयू को जगह न मिलने को कुछ राजनीतिक विश्लेषक नीतीश कुमार की कमज़ोर होती छवि से भी जोड़कर देख रहे हैं। 2020 विधानसभा चुनाव में जदयू तीसरे नंबर पर रही थी इसके बावजूद नीतीश मुख्यमंत्री बनाए गए। पर अब उनकी ख़राब सेहत से ऐसा लगता है कि भाजपा उन पर हावी हो रही है। पर कहा जा रहा है कि गठबंधन के तय फार्मूले के तहत ही विस्तार हुआ है। मंत्रिममंडल में बर्थ को लेकर 3.5 विधायक पर एक मंत्री का फार्मूला तय किया गया था। इस फार्मूले कि हिसाब से जदयू का कोटा पहले ही पूरा हो चुका है जबकि भाजपा कोटे के सात मंत्री कम थे।

 हाल ही में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार ने लोगों से अपील की कि वे 2025 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को वोट दें और नीतीश कुमार को फिर मुख्यमंत्री बनाएं। निशांत कुमार ने कहा कि नीतीश कुमार ने राज्य का विकास किया है और पिछले 19 वर्षों से वे राज्य की सेवा कर रहे हैं इसलिए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाइए। हालांकि राजनीति में सक्रिय होने से जुड़े सवाल को निशांत टाल गए।

फिलहाल, बिहार विधानसभा में बीजेपी के 80 और जेडीयू के 45 विधायक हैं। पर इस विस्तार से ये साफ़ हो गया है कि नीतीश कुमार की संख्याबल की वास्तविकता को नकारने की ताक़त अब ख़त्म हो गई है और वे अब डोमिनेंट पार्टनर नहीं रह गए हैं जो कम संख्या लाकर भी हार्ड बारगेन कर मुख्यमंत्री बन गए थे। हालांकि भाजपा खेमे की ओर से अभी भी यही दोहराया जा रहा है कि चुनाव में नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद के चेहरे रहेंगे।मंत्रिमंडल विस्तार में जातीय संतुलन भी साधने की कोशिश की गई है। भूमिहार से जिवेश कुमार, राजपूत से राजू कुमार सिंह, वैश्य से संजय सरावगी और मोती लाल प्रसाद, कुर्मी से कृष्ण कुमार मंटू, कोइरी-कुशवाहा से सुनील कुमार और अतिपिछड़ा केवट -मल्लाह से विजय कुमार मंडल को मंत्री बनाया गया है। कुशवाहा और अति पिछड़ों को भी साधने की कोशिश की है। कुर्मी नेता कृष्ण कुमार मंटू को पार्टी तय नीति के तहत आगे बढ़ा रही है। हालांकि जब भाजपा और जेडीयू अलग थे तब भी कुशवाहा वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए बीजेपी ने सम्राट चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था। भाजपा के अनुसार एनडीए नेताओं ने विधानसभा चुनाव के लिए अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग रणनीति बनाई गई है। सीमांचल में भाजपा हिंदुत्व का मुद्दा ज़ोर शोर से उठाएगी, मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र में गठबंधन की रणनीति पिछड़ी और अतिपिछड़ी जातियों को साधने की होगी। इस क्षेत्र में पार्टी जातिगत समीकरण साधने के साथ ही विकास को अहम मुद्दा बनाएगी। भोजपुरी क्षेत्र में गठबंधन यादव बनाम गैर यादव ओबीसी का रंग देगी, जबकि पटना,बाढ़ जैसे इलाके में हिंदुत्व और विकास दोनों ही रणनीति का हिस्सा होंगे।

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