मुख्य चुनाव आयुक्त के खिलाफ महाभियोग की तैयारी, हटाना इतना आसान नहीं

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बिहार की मतदाता सूची में त्रुटियों को लेकर विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग और उसके प्रमुख के खिलाफ कड़े सवाल उठाए हैं। विपक्ष का आरोप है कि जानबूझकर वोटर लिस्ट में गड़बड़ियां की जा रही हैं, जिसके चलते निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने चुनाव आयोग की ओर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि इस विषय पर राज्यसभा में चीफ इलेक्शन कमिश्नर (सीईसी) के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने की कोशिशें तेज हो गई हैं।

2023 में लागू हुए नए कानून ने चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में बड़े बदलाव किए हैं। अब मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य सदस्यों के चयन के लिए एक विशेष चयन समिति बनाई जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री शामिल होते हैं। इस समिति की सिफारिश के आधार पर संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत नियुक्ति होती है।

सीईसी को हटाना आसान नहीं है। संविधान के अनुसार केवल संसद ही सर्वोच्च न्यायालय की अनुशंसा के बाद, विशेष परिस्थितियों में, चुनाव आयोग के प्रमुख को पद से हटा सकती है। इस प्रक्रिया की शुरुआत लोकसभा या राज्यसभा में कम-से-कम 50 या 100 सांसदों द्वारा सहमति जताने पर होती है। दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित होने के बाद ही, राष्ट्रपति द्वारा सीईसी को हटाया जा सकता है। इसके अलावा, नए कानून के तहत सीईसी को मजबूत सुरक्षा भी मिली है और उन्हें मनमाने ढंग से नहीं हटाया जा सकता।

2023 के कानून के बाद सीईसी की नियुक्ति और सुरक्षा पहले से अधिक पुख्ता हो गई है, जिससे निष्पक्षता और स्वतंत्रता की गारंटी देखने को मिलती है। इस तरह निर्विरोध निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया बनाए रखने के लिए सीईसी की स्वतंत्रता को प्रभावी तरीके से सुनिश्चित किया गया है।

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