रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने के प्रयास तेज, वैश्विक कूटनीति में भारत की भूमिका अहम

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अलास्का में अमेरिका और रूस के बीच बैठक के बाद रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर शांति प्रयासों में तेजी आई है। बैठक के कुछ दिनों बाद जब यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की यूरोपीय नेताओं के साथ व्हाइट हाउस पहुँचे, तो यह अटकलें तेज हो गईं कि युद्धविराम की संभावना निकट आ रही है।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस दिशा में सक्रिय दिख रहे हैं। सत्ता संभालते ही उन्होंने 24 घंटे के भीतर युद्ध रोकने का वादा किया था। यद्यपि वह इसमें तुरंत सफल नहीं हो सके, परंतु उनकी पहल ने माहौल बनाया है। ट्रंप जानते हैं कि युद्ध शुरू होने के बाद शुरुआती महीनों में तुर्किये की मध्यस्थता से शांति प्रयास लगभग सफल हो गए थे, परंतु यूरोपीय देशों ने यूक्रेन को पीछे हटने से रोका।

विशेषज्ञों का मानना है कि यूरोप की नीति इस संघर्ष में निर्णायक रही है। एक ओर उसने यूक्रेन को सहायता और नाटो में शामिल होने का भरोसा दिया, वहीं दूसरी ओर रूस के विरुद्ध सख्त रुख अपनाया। इसके परिणामस्वरूप संघर्ष लंबा खिंच गया और यूक्रेन को भारी आर्थिक और सामरिक नुकसान झेलना पड़ा।

अभी तक की बातचीत केवल युद्ध रोकने पर केंद्रित है। कब्जे वाले क्षेत्रों के भविष्य, युद्धविराम की शर्तों और सुरक्षा गारंटी पर स्पष्ट सहमति नहीं बन सकी है। यूरोपीय देश मानते हैं कि यूक्रेन को हरसंभव सहयोग जारी रहना चाहिए क्योंकि रूस अब अपेक्षाकृत कमजोर पड़ रहा है। वहीं, अमेरिका में भी इस मुद्दे पर मतभेद हैं। कुछ वर्ग मानते हैं कि रूस के साथ संबंध सुधारना अधिक व्यावहारिक होगा, जबकि अधिक कठोर रुख अपनाने वाले यूरोपीय देशों का प्रभाव अभी भी मजबूत है।

रोचक पहलू यह है कि इस बार कूटनीतिक प्रयास अलास्का से प्रारंभ हुए हैं, जबकि परंपरागत रूप से युद्धविराम वार्ताओं की शुरुआत यूरोप से होती रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह संकेत हो सकता है कि इस बार यूरोप की भूमिका सीमित रहेगी।

भारत की भूमिका भी प्रमुख रूप से सामने आ रही है। अलास्का बैठक से पूर्व भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने रूस का दौरा किया था और दोनों देशों के बीच संवाद स्थापित कराया। पुतिन और ट्रंप की बैठक के बाद राष्ट्रपति पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बातचीत भी की। यह संकेत है कि इस युद्ध को समाप्त करने की प्रक्रिया में भारत की भागीदारी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

युद्ध विराम की दिशा में वैश्विक प्रयास इस समय निर्णायक मोड़ पर हैं। आने वाले समय में यह स्पष्ट होगा कि क्या ये प्रयास स्थायी शांति की ओर बढ़ते हैं या फिर केवल अस्थायी ठहराव साबित होते हैं।

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